Atrial Fibrillation: दिल की अनियमित धड़कन का उपचार कैसे किया जाता है? जानें

Atrial Fibrillation दिल की अनियमित धड़कन : दुनियाभर में हृदय रोगियों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। दरअसल, रोजाना की खराब आदतों के कारण ही आज लोगों में हृदय रोगों का जोखिम बढ़ गया है। एट्रियल फाइब्रिलेशन एक ऐसा ही रोग है। इसमें व्यक्ति की दिल की धड़कने अनियमित हो जाती है। इसमें अचानक व्यक्ति की दिल की धड़कने तेज  हो जाती है, इस स्थिति को टैकीकार्डिया भी कह सकते हैं। एट्रियल फइब्रिलेशन को आप एएफ और एएफआईबी के नाम से भी जान सकते हैं। डॉक्टर के अनुसार एक वयस्क व्यक्ति की हृदय गति प्रति मिनट 60 से 100 के बीच में रहती है। लेकिन एट्रियल फाइब्रिलेशन की स्थिति में व्यक्ति के हार्ट की गति सामान्य स्थिति में भी तेज ही रहती है। ऐसे में व्यक्ति को हार्ट स्ट्रोक, रक्त में थक्के जमना और हार्ट फेलियर होने का जोखिम बढ़ जाता है। जायनोवा शैलबी अस्पताल के कंसल्टेंट डॉ सचित चंदक से आगे जानते हैं एट्रियल फाइब्रिलेशन रोग के कारण, लक्षण और इलाज का तरीका।

एट्रियल फाइब्रिलेशन के लक्षण – Symptoms of Atrial Fibrillation
  • धड़कनें तेज होना: एट्रियल फाइब्रिलेशन का सबसे आम लक्षण हार्ट का फड़फड़ाना, तेज होना या दिल की धड़कने अनियमित होना। इसमें मरीज को खुद की दिल की धड़कने महसूस होने लगती है।
  • थकान: कार्डियक आउटपुट के साथ ही हृदय की धड़कने अनियमित होने से व्यक्ति को कम काम करने के बाद भी थकान ज्यादा महसूस होती है।
  • सांस की तकलीफ: विशेष रूप से शारीरिक गतिविधि के दौरान सांस लेने में कठिनाई होना, एट्रियल फाइब्रिलेश की ओर इशार करती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हार्ट सही तरह से खून को पंप नही कर पाता है।
  • चक्कर आना: ब्रेन में जब रक्त प्रवाह सही तरह से नहीं हो पाता है, तो व्यक्ति को चक्कर आने की समस्या हो सकती है। ऐसे में व्यक्ति का कहीं भी गिरने और चोट लगने की संभावना बढ़ जाती है।
  • सीने में दर्द: कुछ व्यक्तियों को सीने में असुविधा या दर्द का अनुभव हो सकता है।
एट्रियल फाइब्रिलेशन के कारण – Causes Of Atrial Fibrillation

एट्रियल फाइब्रिलेशन के कई कारण हो सकते हैं। आगे जानते हैं इन कारणों के बारे में

  • उम्र का बढ़ना: उम्र के साथ एट्रियल फाइब्रिलेशन होने की संभावना बढ़ जाती है। मुख्य रूप से 65 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्तियों को यह समस्या हो सकती है।
  • हाई बीपी: हाई ब्लड प्रेशर से एट्रियल फाइब्रिलेशन होने का खतरा अधिक रहता है, क्योंकि ब्लड प्रेशर हार्ट पर दबाव डालता है और यह हार्ट की विद्युत प्रणाली को बाधित करता है।
  • हृदय रोग: कोरोनरी आर्टरी डिजीज, हार्ट वाल्व डिसऑर्डर और कार्डियोमायोपैथी जैसी स्थितियां एट्रियल फाइब्रिलेशन का कारण बन सकती हैं।
  • मोटापा: शरीर का अतिरिक्त वजन एट्रियल फाइब्रिलेशन के खतरे को बढ़ा सकता है, क्योंकि यह अक्सर हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज जैसे अन्य जोखिम कारकों को बढ़ाता है।
  • डायबिटीज: डायबिटीज अनियंत्रित होने पर हार्ट की रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचा सकती है और एट्रियल फाइब्रिलेशन की संभावना को बढ़ सकती है।
एट्रियल फाइब्रिलेशन का उपचार – Treatment Of Atrial Fibrillation

एट्रियल फाइब्रिलेशन में रोग के कारणों को दूर करने पर विचार किया जाता है। साथ ही हार्ट बीट को नॉर्मल करने का प्रयास किया जाता है। इसमें डॉक्टर मरीज के लाइफ्स्टाइल में भी कुछ जरूरी बदलाव कर सकते हैं।

लाइफस्टाइल में किए जाने वाले बदलाव

  • स्वस्थ वजन बनाए रखें
  • शराब और कैफीन का सेवन सीमित करें
  • तनाव को प्रबंधित करें
  • धूम्रपान से दूरी बनाएं

इसके अलावा डॉक्टर दवाओं, कार्डियोवर्जन (हार्ट बीट को नॉर्मल कनरे के लिए बिजली के झटके देना) का उपयोग किया जा सकता है। इसके साथ ही, कैथेटर एब्लेशन एक बेहतरीन प्रक्रिया है, जहां हृदय में असामान्य विद्युत मार्गों को नष्ट करने के लिए रेडियोफ्रीक्वेंसी एनर्जी या क्रायोथेरेपी का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, मरीज की स्थिति के आधार पर सर्जरी का विकल्प भी चुना जा सकता है।

इस स्थिति से बचने के लिए व्यक्ति को लाइफस्टाइल में जरूरी बदलाव करने चाहिए। इसके बाद भी यदि हार्ट में किसी तरह की परेशानी होने पर आप तुंरत डॉक्टर के पास जाएं।

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